उदय-तेज
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जब मैं कहीं रूठ जाऊं तो मुझे मना लेना
घी से भरे दीपक को जला के रखना
अपने हाथों के सहारे रोके रखना लौ को,
कितनी भी अंधी आये मुझे बुझने ना देना
जब मैं कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना,
प्यार के हर एक बाण को बचा के रखना
धनुस पर लगा कर रखना तरकश को,
कितनी भी मुश्किल आये मुझे टूटने ना देना
जब मैं कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना,
आँखों की पलकों पर मुझे बिठा कर रखना
उतरने ना देना कभी मेरे इन आसुओं को,
कितनी भी धुंध छाये मुझे रोने ना देना
जब मैं कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना,
जब मैं कहीं रूठ जायूं तो मुझे मना लेना,
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